महाराजजी के आश्रम का प्रसाद औषधियों से भी बड़कर होता था ।
श्रीमति पूष्पा शाह बताती है कि – मेरे बड़े लड़के को पीलिया रोग हो गया बहूत ईलाज कराने के बावजूद भी मर्ज़ बड़ता चला गया । लड़के की ये दशा देखकर मैं बहूत दूखी और उदास रहने लगी । तब एक दिन लड़के को उठाकर कैंची धाम ले आयी और महाराजजी के चरणों में उसे बैठा कर सब हाल कहा । महाराजजी ने भी कह दिया,” घबरा मत हो जायेगा ।”” तभी एक सेवक से बाबा बोले,” इसे ( मूझे ) प्रसाद दो ।” और मेरे लिये चार पूरी और आलू का प्रसाद आ गया । मैंने आव देखा न ताव उस प्रसाद को अपने लड़के को बाबा के सामने ही खिलाना शुरू कर दिया । बालक भी कई दिन से उबला खाना खाकर परेँशान था , उसने पूरी का प्रसाद गपागप खाना शुरू कर दिया । महाराज जी चिल्लाकर बोले,” क्या कर रही है ये ? लड़का मर जायेगा ।” मैंने भी सहज भाव से उतर दिया आपका प्रसाद पाकर भी मरता है को मर जाये । ” बाबा मना करते रहे और मैं उसे प्रसाद खिलाती रही और वे आन्नद से खाता गया ।
कहाँ धन्वन्तरि की औषधियाँ और कहाँ पूरी आलू का भोग !! और उस बाबा के भोग ने देखते ही देखते मेरे बेटे को अच्छा कर दिया ।
जय गुरूदेव
अनंत कथामृत