चंपावत का प्रसिद्ध देवीधुरा ‘माँ वाराही बग्वाल मेला’, रक्षाबंधन पर होने वाले पत्थरमार युद्ध का जानें इतिहास

माँ वाराही बग्वाल मेला

आज 09 अगस्त 2025 है। चंपावत जिले के मां बाराही धाम देवीधुरा में विश्व प्रसिद्ध बग्वाल आज रक्षाबंधन पर्व पर खेली जाती है। बगवाल में चारों खाम (लमगड़िया-बालिक, गहरवाल और चम्याल) के योद्धाओं द्वारा प्रतिभाग किया जाता है। देवीधुरा बग्वाल मेला, जिसे “पत्थर युद्ध” भी कहा जाता है, उत्तराखंड के चंपावत जिले में देवीधुरा मंदिर में रक्षाबंधन के दिन आयोजित होने वाला एक अनोखा मेला है। एक पारंपरिक प्रथा है और इसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।

पुराना है इतिहास

मां बाराही देवी मंदिर का इतिहास 11वीं शताब्दी से जुड़ा है और यह अपनी अनूठी वास्तुकला और पत्थर मार युद्ध (बग्वाल) के लिए जाना जाता है‌। जो हर साल श्रावणी पूर्णिमा को मंदिर के प्रांगण में आयोजित किया जाता है। देवीधुरा मंदिर का इतिहास 11वीं शताब्दी से जुड़ा है, और यह माना जाता है कि यह मंदिर कत्यूरी राजाओं द्वारा स्थापित किया गया था‌। अन्य मान्यताओं के अनुसार यह भी माना जाता है कि मंदिर में स्थापित देवी वाराही की मूर्ति को कोई भी व्यक्ति खुली आंखों से नहीं देख सकता है, क्योंकि मूर्ति के तेज के कारण आंखों की रोशनी चली जाती है, इसलिए मूर्ति को ताम्रपतिका में रखा जाता है‌।

बग्वाल से जुड़ी मान्यता

बगवाल से जुड़ीं यह मान्यता है कि पूर्व में यहां नरबलि देने का रिवाज था, लेकिन जब चम्याल खाम की एक वृद्धा के एकमात्र पौत्र की बलि के लिए बारी आई तो वंशनाश के डर से उसने मां बाराही की तपस्या की। देवी मां के प्रसन्न होने पर वृद्धा की सलाह पर चारों खामों के मुखियाओं ने बगवाल की परंपरा शुरू की। तबसे ये परंपरा चली आ रही है। चंपावत जनपद के पाटी ब्लॉक के देवीधुरा में माँ वाराही धाम मंदिर के खोलीखांड दुबाचौड़ में हर साल अषाढ़ी कौथिक (रक्षाबंधन) के दिन बग्वाल मेला होता है। बग्वाल वाराही मंदिर के प्रांगण खोलीखांड में खेली जाती है। इसे चारों खामों के युवक और बुजुर्ग मिलकर खेलते हैं। लमगड़िया व वालिग खामों के रणबाँकुरे एक तरफ, जबकि दूसरी ओर गहड़वाल और चम्याल खाम के रणबाँकुरे डटे रहते हैं।

राजकीय मेला घोषित

11 जुलाई, 2022 को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने चंपावत के प्रसिद्ध देवीधुरा ‘माँ वाराही बग्वाल मेले’ को राजकीय मेला घोषित किया था।

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